शनिवार, 11 जुलाई 2015

जीवन के रंग

जीवन के आपाधापी मे 
सृष्टि के अनुपम चित्र में 
उस महान चित्रकार की 
तूलिका से खत्म होता जा रहा रंग .... 

बेस्वाद होते टमाटर 
रोज चटकीले लाल नज़र आते हैं 
बैगनी रंग और चटकदार होता जा रहा है 
मगर स्वाद खत्म हो रहा 
है बैगन में 

अधरों पर मोहित मुस्कान लिए 
जो बाला बैठी है चटकदार कपड़े पहने 
उसके नेलपॉलिश का भी रंग 
कुछ अजीब है 
बेच रही है खोखली मुस्कान 
और खोता जा रहा है रंग..... 

जीवन का गम, खुशी सब 
एक रंग मे होती जा रही है 
सफ़ेद रंग भी अब सफ़ेद न रहा 
लाल चोला भी अब लाल न रहा 
जीवन का रंग अब खोता जा रहा है ...... 

उदासी, खुशी, उल्लास 
कहीं दिखती हो तो चले आओ 
बहुत रंगीन हैं 
चटकदार माल बने हैं 
जिसमे रंग तो हैं मगर रंग है नहीं .... 

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