मंगलवार, 11 फ़रवरी 2014

लिखा जाए...

किताबों मे रखे उस मोर के पंख पे लिखा जाए
मेरा दिल कहता है कि एक अच्छी सी लाईन लिखी जाए
इस बेपरवाह भीड़ मे न शौक है न सलीका
गजल किस के लिए, किसके लिए कविता लिखी जाए
वो पेड़, वो मोहब्बत, वो पर्वत छोड़कर आओ
किताबों मे दबे उस एक फूल पर लिखा जाए
बहुत इंकलाब करके मैं तन्हा हूँ  इस जमाने मे
किसे अपना और किसे पराया लिखा जाए
बदलते दौर के नेताओं का जिक्र क्या करना
अब नई राजनीति पे लिखा जाए ...
ज़िंदगानी मे बहुत फंस गए हम  यारों
दांतों मे फंसे उस तिनके पर अफसाना लिखा जाए ... 

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