शुक्रवार, 24 मई 2013

कल ........

कई दिनों से उसे कल बहुत सता  रहा था, बहुत परेशान कर रहा था। लेकिन वह आज सुबह से ही कल की चिंता में बैठी हुयी थी, वह जो भी काम कर रही थी उसमे कल ही आ रहा था। कल ही तो मनु और मिली आयेंगे ! मनु उसका कॉलेज का दोस्त था, वह अपनी आराम कुर्सी पर बैठे हुए अतीत में खो जाती है… 

जब उसका एडमिशन सेंट्रल कॉलेज में हुआ था और वह अपने पापा के साथ पहली बार सेंट्रल कॉलेज गयी थी, चारों तरफ लड़कों, लड़कियों की भीड़ थी उसे बहुत ज्यादा घबराहट होने लगी थी, वह यह सोच रही थी कि इतनी भीड़ में पता नहीं मुझसे कोई बोलेगा या नहीं, कोई दोस्त बनेगा या नहीं, वह इसी उधेड़ बुन में  चली जा रही थी, उसे इतना भी ख्याल नहीं आया कि उसका क्लास रूम आ गया है, पापा ने उसे कहा कि  तुम क्लास करने के बाद घर आ जाना में वापस जा रहा हूँ .. उसने केवल अपना सर हिला  दिया, उसके पापा बैंक में क्लर्क थे उसका न कोई भाई था न बहन थी माँ बचपन में ही मर गयी थी, पापा ने ही उसे पाला था।

वह क्लास रूम में  प्रवेश करी ही थी, कि   सबकी  नज़रें उसे घूरने लगीं वह आँखे निचे करके चुपचाप एक डेस्क पर बैठ गई। क्लास ख़त्म होने के बाद सारे लड़के लड़कियां क्लास से बाहर  चले गए, वह अकेली ही बैठी हुयी थी, उससे किसी ने भी बात नहीं करी ...  इससे वह बहुत दुखी थी उसने एक   गहरी साँस  भरी और सर उठा कर एक ठंडी साँस  छोड़ते हुए सामने देखा  तो उसे एक पतला दुबला  लड़का सर झुकाए  हुए  दिखाई दिया, वह उसे देखकर सोची, कही यह भी हमारी तरह नया  तो नहीं, वह उठी  और फिर कुछ सोचकर बैठ गयी ... उसका दिल तो उससे कह रहा था कि  वह जाकर उससे बात करे मगर उसका कॉलेज में आज पहला दिन था  और इसीलिए वो हिम्मत नहीं कर पा रही थी।

वह अगले दिन फिर कॉलेज गयी .. क्लास रूम में घुसते ही उसने सबसे पहले उस लड़के को खोजा, वह आज भी सबसे अलग बैठा हुआ था। लेकिन वह आज सोच कर आई  थी कि  उसे दोस्त बनाना ही है। वह उसके बगल वाली टेबल पर अपनी कॉपी रखते हुए पूछी कि  क्या में यहाँ बैठ सकती हूँ .... ? वह मुस्कराते हुए बोला .. जरुर मेरे साथ कोई नहीं है .... वह बैठते हुए बोली में अंजलि हूँ  मेरा  एडमिशन कल ही हुआ है तुम्हारा क्या नाम है ?

मनु .... लड़के ने बोला…

कुछ दिनों के बाद मेरी उससे बहुत अच्छी  दोस्ती हो गयी .. मनु हमारे घर पर  भी आने लगा और पापा बहुत खुश थे कि मुझे कोई दोस्त मिल गया .. और में भी बहुत खुश थी।

मेने एक दिन मनु से पूछा  कि  तुम्हारे पापा, मम्मी, भाई, बहन .... तुमने अपने बारे में कभी कुछ बताया नहीं .... ? वह चुप रहा, वह मेरी तरफ देख रहा था और उसके आँखों में आंसू  आ गए थे ...  में समझ गयी  कि  उसे बहुत दुःख हुआ है ... मैंने कहा सॉरी ... वो बोला कि  तुम्हारे सॉरी कह देने से  सच्चाई तो नहीं बदल सकती और सच्चाई यह है कि  में अनाथालय  में पला हूँ  मेरा न तो कोई बाप है और न ही कोई माँ  है… और न ही कोई दोस्त…. में अवाक रह गयी।

धीरे धीरे समय बितता  गया उसने और मेने ग्रेजुएशन एक साथ ही करा . एक दिन पापा ने उससे पूछा कि मनु आगे क्या करना है तो उसका जवाब था कि  आपका आशीर्वाद रहा तो  आई . ए . एस . बनना  है ... पापा ने कहा वो तो हमेशा ही रहेगा।

मेरी दोस्ती  कब  प्यार में बदल गयी इसका अहसास मुझे नही हुआ,  वह एक दिन आया और कहने लगा कि में इलहाबाद जा रहा हूँ आई . ए . एस   की कोचिंग  करने जब आई . ए . एस   बन जाऊंगा तब आऊंगा, मैंने उससे कहा तुम जाना चाहते हो तो जाओ।

में और पापा उसे छोड़ने स्टेशन तक  गए, वह ट्रेन में बैठा हुआ था हम लोग खिड़की पर  खड़े उससे बात कर रहे थे, ट्रेन ने सिटी दी और साँप  की तरह सरकने लगी .. वह हाथ निकाल कर हिला रहा था वह धीरे धीरे हमसे दूर जा रहा था, मेरी आँखे अनायास ही भर आयी।

धीरे- धीरे दिन  बीतते  गए मनु का पत्र मुझे महीने में दो-चार  मिल जाया करता था जिससे  उसका हाल चाल ज्ञात होता रहता था। एक दिन उसका पत्र आया कि  वह प़ी० सी० एस०  का एग्जाम देना चाहता है .. वह क्या करे? उसने मेरी राय  मांगी थी, मैंने लिख दिया कि वो जरुर दे एग्जाम। किस्मत ने उसका साथ दिया वह पी० सी० एस० में आ गया। यह समाचार सुनकर में बहुत खुश हुयी तुरंत मंदिर जाकर प्रसाद भी चढ़ा आयी। उसको मेरे पास से गए पूरा एक साल ४ महिना हो चूका था। मैंने उसे लिखा कि  वह छुट्टी लेकर यहाँ घूम जाये .. उसने मुझसे कहा कि  अभी उसकी ट्रेनिंग चल रही है .. ट्रेनिंग पूरी होते ही वो आ जायेगा।

लेकिन होना तो कुछ और ही था  पापा को हार्ट अटैक आया और वह मुझे अकेला छोड़ गए, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था, में क्या करूँ, मैंने मनु को फ़ोन करा दिया था, मनु तुरंत आया सारा काम उसी ने करा और तेरहवीं करके जब वो जाने लगा तो उसने कहा अंजलि मेरी ट्रेनिंग पूरी होने वाली है ... ट्रेनिंग पूरी होते ही में आता हूँ  और अगर तुम्हे कोई ऑब्जेक्शन न हो तो में तुमसे शादी करना चाहता हूँ। में उस समय कुछ नहीं बोली .. वह चला गया, उसके जाने के बाद मैंने बहुत सोचा कि  क्या एक बैंक क्लर्क(पापा की जगह मुझे सर्विस मिल गयी थी)  की शादी पी ० सी ० एस ० अधिकारी से हो सकती है .. .. क्या ये सही रहेगा?  क्या शादी करने के बाद हमारी और मनु की दोस्ती कायम रहेगी ... ? और सारी रात करवटें बदलती रही .. और फिर मैंने ये निश्चय किया कि  में मनु से शादी नहीं  करुँगी .. और आजीवन अविवाहित ही रहूंगी।

मुझे मनु के कई  पत्र प्राप्त हुये, मैंने अपना निर्णय उसे लिख भेजा ... वह बहुत गुस्से मे रहा उसने मुझे तीन महीने तक कोई पत्र नहीं भेजा था ....  फिर एक दिन उसका पत्र प्राप्त हुआ कि उसकी पोस्टिंग इस समय लखनऊ मे हो गई है  और वह मेरा अंतिम निर्णय जानना चाहता था मैंने उसे जवाब दे दिया कि मेरा निर्णय अंतिम ही है .. में शादी नहीं करुँगी .. अंत में वो हार कर .. अपने ही बैच  की मिली नामक लड़की से शादी करी, उसने मुझे शादी में बुलाया था  मगर में  गयी नहीं थी।

 उसकी तन्द्रा तब टूटी जब दूध  वाले ने  आकर डोर बेल बजाई, वह हड़बड़ा  कर उठी दूध लिया फिर घर को सँवारने में लग गयी, वह सोचने लगी कि  इतने दिन तक मनु के पत्र में लिखे दिन तारीख दूर थे लेकिन आज वे कब कल बन गए पता ही नहीं चला। मनु मिली का कमरा  वह कई दिन  पहले ही ठीक ठाक करवा दिया था, उसे याद था कि  मनु को चाय  पसंद नहीं है इसीलिए उसने नेसकेफे  का नया डिब्बा मंगवाया है।

आज वह सुबह से ही बहुत व्यस्त थी एक लम्बा अरसा गुजर गया  उसने अपने आपको कभी व्यस्त महसूस नहीं किया, उसकी दिनचर्या में से बहुत सी चीजे निकल गयी थी, पापा का दफ्तर जाना, उसका कॉलेज जाना, सुबह की भाग- दौड़, हंसी, घूमना, चूल्हे पर दूध, फ्लेट के बाहर बजती हुयी काल बेल, हाँ ..... ना…… हाँ .... ना ....  इन्ही सब के बीच  एक और चीज निकल गयी थी वह "कल" था ... कितने ही सालों से उसके सामने सिर्फ आज ही रहता है और यह "आज" बिलकुल एक हड्डी रहित केचुए की तरह सारा दिन  सरकता है ... फिर वह सो जाती है उठती है सामने मुंह बाए वाही आज खड़ा दिखाई देता है।

जब से मनु की चिट्ठी आयी है, उसे बरसों से बिछड़ा हुआ कल अपने आसपास घूमता - फिरता दिखाई देने लगा है। वह सोचने लगी लखनऊ से काशी विश्वनाथ  सात बजे तक आ जाती है स्टेशन  से निकलकर यहाँ तक पहुंचने में एक घंटे  जरुर लग जायेगा .. तब तक वह नहा धो कर पूजा  करके एक प्याला चाय भी पि चुकेगी ... दूधवाला आ  चूका होगा, सफाई करने वाली भी अपना काम ख़त्म कर चुकी होगि।  उसे याद आ गया कि  मनु इंग्लिश का अखबार पढता है और उसके पास हिंदी का अखबार आता है, उसे कल सुबह साढ़े सात बजे के आसपास अखबार वाले को भी कहना होगा।

............ और  वो कल आ ही गया।

और मनु और मिली की कार आठ बजके १० मिनट पे घर के सामने खड़ी  हुयी थी मनु ने  सर उठा कर बालकनी में मुझे देखा  मेने हाथ उठा कर हेलो  कहा  और निचे उतरने वाली सीढियों की तरफ बढ़ी ....  उन्हें लेकर  में रूम में आ गयी ....  मनु बोल तुम दोनों गप्पे मारों मुझे एक सेमिनार में १० बजे जाना है ... ये कहता हुआ वो बाथरूम में चला गया।

हम तीनो उस दहलीज के अन्दर आ चुके हैं जहाँ से वह रेगिस्तान शुरू होता है जिसे बुढ़ापा कहते हैं, तीनों के चेहरे पर शोखी, कुछ लज्जा, कुछ हंसी और कुछ बीते हुए कल की यादों की छोटी छोटी  पतली पतली पहाड़ी और जल धाराएँ  बहने लगी हैं ।

मनु जब तक फ्रेश हो रहा था हम दोनों ने उसकी मनपसंद पकोड़ी  तैयार कर ली, मनु नहा कर बाहर आया तो मिली बोली दीदी ने तुम्हारे लिए पकोड़ी बना रही है ...  मनु बालों को कंघी करते हुए बोल .. वाह मज़ा आ जाएगा अरसा हुआ इसके  हाँथ की पकोड़ी खाए हुए .. वह लगभग तैयार हो गया था .. डाइनिंग टेबल पर बैठते हुए उसने कहा क्या तुम लोग नाश्ता नहीं करोगे ?  प्लेट में पकोड़ी लाते हुए अंजलि ने कहा कि  तुम कर के निकल जाओ .. हमें कोई जल्दी नहीं है आराम से कर लेंगे।

मनु का तीन दिन का सेमिनार  उसके बाद दिल्ली में दो दिन और  मिलना जुलना, सैर सपाटा पहला कल  सामने है और कुल मिलकर  चार कल और हैं .. कल शाम  को शोपिंग करने भी जाना है।

उसके तीन -चार कल  मनु मिली के साथ ऐसे गुजर  गए जैसे किसी आर्मी परेड में सैनिकों के चुस्त-दुरुस्त  दस्ते मंच के सामने से सलामी देते हुए गुजरते हों ....

और फिर वह कल आ गया जिसकी पदचाप उसे इन दिनों उसे लगातार सुनायी दे रही थी। कल सुबह मनु - मिली वापस चले जायेंगे। शाम को सब घूम फिर कर वापस आ गए थे मिली पेकिंग करने में लगी हुयी थी, समय भाग रहा था .. और बार बार ये कल बीच  में आ जाता था।

कल उसे बहुत जल्दी उठना होगा ... नाश्ता बनाना होगा, वह अपने कमरे में सोने की कोशिश कर रही थी ............ नींद भी टुकड़ों में आ रही थी, कल ये लोग चले जायेंगे, कल से अंग्रेजी वाला अखबार बंद करना होगा .. दूध वाले से भी मना करना होगा ... कल उसे बैंक भी जाना  है ... कल ..... कल ... और सिर्फ . कल ........





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