बाहर से जुड़ने में हम तुम भीतर बेहद टूटे हैं ...
ऐसे में भी लोग न जाने हमसे क्यूँ रूठे हैं .....
सबको खुश रखने में हमने न जाने क्या क्या दर्द सहे ..
कहने को तो कह सकते थे लेकिन हम खामोश रहे .....
ख़ामोशी क्या समझेंगे वो जो बातों के भूखे हैं ....
आंसू तो पवित्र हें लेकिन होंठ सभी के झूठे है ......
जिसको चाहा दिल से चाहा शायद यही गुनाह हुआ ....
में तो हुआ समर्पित लोग कहें गुमराह हुआ ....
हर सच्चाई शरमाई सी हम सब कितने झूठे हैं ....
बाहर से जुड़ने में हम तुम भीतर बेहद टूटे हैं ...
ऐसे में भी लोग न जाने हमसे क्यूँ रूठे हैं .....
सबको खुश रखने में हमने न जाने क्या क्या दर्द सहे ..
कहने को तो कह सकते थे लेकिन हम खामोश रहे .....
ख़ामोशी क्या समझेंगे वो जो बातों के भूखे हैं ....
आंसू तो पवित्र हें लेकिन होंठ सभी के झूठे है ......
जिसको चाहा दिल से चाहा शायद यही गुनाह हुआ ....
में तो हुआ समर्पित लोग कहें गुमराह हुआ ....
हर सच्चाई शरमाई सी हम सब कितने झूठे हैं ....
बाहर से जुड़ने में हम तुम भीतर बेहद टूटे हैं ...
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