देखती रहती है यूँ ही हर रोज ...
आसमां की तरफ बेमतलब जमीन ...
हमारा इतिहास बन जाएगी दब जायेंगे ..
सब यहीं फिर भी चुप रहेगी ये जमीं ....
मतलबी इन्सान ने ये क्या क्या किया ..
अपने लिए बेच डाली सारी जमीं ....
कंक्रीटों के जंगल में न बच पाई जमीं ...
हे भगवान तुझे मालूम होगा ....
कितनी , किसको चाहिए ये जमीं ...
अपने दिल का बोझ न संभाल सकी ...
तो आसमां को किस तरह संभाले ये जमीं .....
अरे !! शर्म करो !! बर्तन ही बेच लो मुरादाबाद में कम से कम जमी तो छोड़ दो .......
आसमां की तरफ बेमतलब जमीन ...
हमारा इतिहास बन जाएगी दब जायेंगे ..
सब यहीं फिर भी चुप रहेगी ये जमीं ....
मतलबी इन्सान ने ये क्या क्या किया ..
अपने लिए बेच डाली सारी जमीं ....
कंक्रीटों के जंगल में न बच पाई जमीं ...
हे भगवान तुझे मालूम होगा ....
कितनी , किसको चाहिए ये जमीं ...
अपने दिल का बोझ न संभाल सकी ...
तो आसमां को किस तरह संभाले ये जमीं .....
अरे !! शर्म करो !! बर्तन ही बेच लो मुरादाबाद में कम से कम जमी तो छोड़ दो .......
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