मंगलवार, 11 अक्तूबर 2011

pate ki baat..

अगर में असत्य कहता हूँ, झूठ कहता हूँ तो इसका मतलब यह नहीं है कि ऐसा जो झूठ   मे बोल रहा हूँ वो झूठ ही होगा ! असत्य और झूठ का भी अपना एक अस्तित्व है और होता ही है... जब हम ये कहते हैं कि स्वप्न झूठ है, तो उसका यह मतलब बिलकुल नहीं है कि स्वप्न का अस्तित्व नहीं है...! उसका केवल इतना ही मतलब होता है कि स्वप्न का अस्तित्व मानसिक है, वास्तविक नहीं है, और जब हम कहते हैं कि जगत माया है, तो उसका मतलब यह नहीं होता कि जगत नहीं नहीं है.. क्यूंकि अगर नहीं है तो किससे कह रहे हैं ? कौन कह रहा है ? किसलिए कह रहा है ?




एक आदमी रात को कहीं जा रहा था, रस्ते में एक रस्सी पड़ी थी और वह सांप समझ कर डर कर भाग खड़ा हुआ, अगर उससे ये कहा जाये कि अरे पगले सांप असत्य था झूठ था ... तुम व्यर्थ भाग रहे हो, तब इसका मतलब यह तो नहीं हुआ कि सांप झूठ था और इसका यह भी मतलब नहीं है कि उसे सांप दिखाए नहीं दिया, अगर उसे दिखाई नहीं देता तो वो भागते नहीं, कम से कम उसे तो दिखाए दिया सांप ! और जहाँ तक सांप के दिखाई देने का सवाल है तो उस आदमी के लिए वहां सांप था ! और अगर अब उसे आप कहो कि तू आकर देख यहाँ कोई सांप नहीं ये तो केवल रस्सी है तो वो बिलकुल नहीं आएगा क्यूंकि उसने अपनी आँखों से सांप देखा है... अगर आप ज्यादा कहोगे तो वो ये कहेगा कि एक लाठी दे दो तब आऊंगा अगर मुझे सांप दिखा तो में मार दूंगा.. तब आऊंगा.. मगर आपको ये पता है कि लाठी का कोई फायदा नहीं है ये तो रस्सी है.. मगर आप उसे लाठी दोगे.. और फिर उसकी हिम्मत होगी.. और आप भी ये मान गए कि वहां सांप था.. नहीं तो उसे लाठी क्यूँ देते ..!



में एक अँधेरे कमरे में दस कदम अन्दर कि और चला जाऊं और अब मुझे इस अँधेरे कमरे से बाहर आना है तो मुझे कम से कम दस कदम और चलना पड़ेगा.. और मुझे कोई कहे कि अगर आपको इस अँधेरे कमरे से बाहर आना है तो दस कदम और चलिए .. तो में कहूँगा अरे पागल में इस दस कदम चलने के कारण ही अन्दर हूँ और तू मुझे दस कदम और चलने को कह रहा है.. अरे में तो और अँधेरे में चला जाऊंगा.. अरे तू तो मुहे फसा रहा है .. ... अरे मुझे तो ऐसी तरकीब बता जिससे में बाहर आ सकूँ, निकल जाऊं .... ! लेकिन मुझे कम से कम दस कदम तो चलना ही पड़ेगा.. बस चलने का रुख अलग करना पड़ेगा, दिशा अलग करनी होगी, चेहरा बदल गया होगा, जहाँ पीठ थी वहां मुहं होगा और जहाँ मुहं था वहां पीठ होगी... और केवल दस कदम चल कर में अँधेरे कमरे से बाहर निकल जाऊंगा...!



हमें जो दिखाई पड रहा है जीवन में वह जीवन का सत्य नहीं है, पूरी तरह जागकर देखा जाये तभी सब दिखाई पड़ेगा.. !



हम झूठ में जी रहे हैं, लेकिन जितना हम झूठ में उतर गए हैं, उतना ही हमें वापस लौटना होगा.. और सच कहता हूँ जिस दिन हम वापस लौटेंगे उस दिन हम पाएंगे कि बड़े मजे की बात हो गयी है.. !

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