सोमवार, 27 दिसंबर 2010

तकदीर

नफरतों और बेमानिओं के दौर चल पड़े
भाईयों हम भी अपने को आजमाने निकल पड़े
वे परीआं वे गुडिया उनकी किस्मत में कहाँ
कितने बच्चे भोर में भीख मांगने निकल पड़े
एक सच बोल देता तो बोझ हट जाता तभी
पर छुपाने को उसे सों सों झूठ बोलने पड़े
जो करते रहे सदा उजाले की बातें
वो ही अंधेरों में महफ़िल सजाने चल पड़े ....

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